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जिले के बारे में

परिचय

झारखंड के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित खूंटी एक ऐसा जिला है जो सांस्कृतिक समृद्धि और ऐतिहासिक महत्व से परिपूर्ण है। 12 सितंबर 2007 को खूंटी को रांची जिले से अलग कर झारखंड का 23वां जिला बनाया गया। खूंटी जिला रांची से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है और दक्षिण छोटानागपुर प्रमंडल का हिस्सा है।

2,535 वर्ग किलोमीटर में फैला यह जिला मुख्य रूप से मुंडा और उरांव जैसे जनजातीय समुदायों का निवास स्थल है, जो अपनी समृद्ध विरासत और परंपराओं को आज भी जीवंत बनाए हुए हैं। खूंटी का विशेष ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यह महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली है। यह विरासत क्षेत्र को एक मजबूत आदिवासी पहचान और गौरव प्रदान करती है, जो प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

खूंटी जिला अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत और आदिवासी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। मुंडा और उरांव जैसे जनजातीय समुदाय यहां की ऐतिहासिक संरचना के मुख्य आधार हैं। मौर्य से लेकर नागवंशी राजवंशों तक का प्रभाव इस क्षेत्र पर रहा, जिसमें नागवंशी शासन लगभग 5वीं शताब्दी ईस्वी में उभरा।

औपनिवेशिक काल में यहां विद्रोह की लहरें उठीं, जिनमें 1831-32 का कोल विद्रोह उल्लेखनीय है। 1857 की क्रांति में भी खूंटी की सक्रिय भूमिका रही। सबसे प्रमुख आंदोलनउलगुलान (1895–1900) था, जिसका नेतृत्व भगवान बिरसा मुंडा ने किया। यह क्षेत्र आदिवासी प्रतिरोध का प्रतीक रहा है।

भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक विशेषताएं

खूंटी जिला झारखंड के दक्षिणी भाग में स्थित है, जिसकी भौगोलिक स्थिति 22°58′ से 23°45′ उत्तर अक्षांश और 84°99′ से 85°56′ पूर्व देशांतर के बीच है। औसतन 611 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह क्षेत्र पूर्वी छोटानागपुर पठार का भाग है।

यहां की भौगोलिक संरचना में ऊँचे-नीचे पठार, अलग-थलग पहाड़ियाँ और मध्यम उपजाऊ लैटराइट मिट्टी शामिल हैं। कृषि मुख्यतः वर्षा पर निर्भर है।

मुख्य नदियाँ: कारो, तजना, चाटा और बनई नदियाँ।

वन एवं पहाड़ियाँ: सल, महुआ और पलाश के घने जंगलों के बीच छोटी पहाड़ियाँ बिखरी हुई हैं। आदिवासी समुदायों द्वारा संरक्षितसरनानामक पवित्र वन क्षेत्र धार्मिक और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण हैं।

जलवायु और पारिस्थितिकी

जलवायु: खूंटी ज़िला Agro-climatic zone – Western Plateau Region (Zone-II) of Eastern Plateau and Hill Region VII क्षेत्र में आता है, जिसमें तीन प्रमुख ऋतुएँ होती हैं—

  • ग्रीष्मकाल: मार्च से जून मध्य, तापमान 25°C से 43°C।
  • वर्षा ऋतु: मध्य से सितंबर, वार्षिक वर्षा 1100–1300 मिमी।
  • शीतकाल: नवंबर से फरवरी, तापमान 6°C से 20°C।

पारिस्थितिकी: क्षेत्र जैव विविधता से परिपूर्ण है।

  • वनस्पति- साल, महुआ, पलाश, आदि।
  • वन्य जीव- जंगली सूअर, सियार, हाथी, मोर, तीतर और हॉर्नबिल।
  • पारंपरिक संरक्षण-झरना, चेक डैम, लाह और महुआ संग्रहण जैसे परंपरागत तरीके पर्यावरण संरक्षण में सहायक हैं।

प्रशासनिक संरचना

उपविभाग और प्रखंड: खूंटी सदर उपविभाग के अंतर्गत 6 प्रखंड हैं – खूंटी, कर्रा, मुरहू, तोरपा, रनिया और अड़की।

पंचायती राज: तीन-स्तरीय प्रणाली के अंतर्गत 86 ग्राम पंचायतें और 756 गाँव हैं (754 आबाद)। यह स्थानीय स्वशासन को मजबूती प्रदान करता है।

कानून व्यवस्था: 13 पुलिस स्टेशन कार्यरत हैं, जिनका संचालन पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में होता है।

जनसंख्या और जनगणना

जनगणना 2011 के अनुसार खूंटी जिले की कुल जनसंख्या 5,31,885 है, जिसमें पुरुष 2,66,335 और महिलाएँ 2,65,550 हैं।लिंगानुपात 997है, जो झारखंड में सबसे अधिक संतुलित में से एक है।

  • ग्रामीण जनसंख्या: 91.55%
  • शहरी जनसंख्या: 8.45%
  • अनुसूचित जनजाति: 73.25%
  • अनुसूचित जाति: 4.52%
  • साक्षरता दर: 63.86% (पुरुष – 74.08%, महिला – 53.69%)
  • जनसंख्या घनत्व: 210 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी

संस्कृति और विरासत

पारंपरिक त्योहार:
  • सरहुल:वनों में साल फूल चढ़ाकर पूजा।
  • करमा:करम वृक्ष की पूजा और सामूहिक नृत्य।
  • सोहराय:मवेशी पूजा और दीवार चित्रकला।
  • मगही, फगुनी, बहा परबभी अत्यंत लोकप्रिय हैं।
कला और शिल्प:
  • सोहराय और खोवर चित्रकला – महिलाएं प्राकृतिक रंगों से दीवारों पर चित्र बनाती हैं।
  • हस्तशिल्प:बांस की टोकरियाँ, लकड़ी के औजार और लाह की चूड़ियाँ।
  • संगीत:ढोल, तुरही, नगाड़ा और आदिवासी नृत्य जैसे जादुर और दुरंग प्रमुख हैं।

अर्थव्यवस्था और जीविका

खूंटी की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि और वनों पर आधारित है। ग्रामीण लोग धान, मक्का, दालें उगाते हैं तथा लाह, महुआ, साल बीज, टेंदू पत्ते और बांस जैसे लघु वन उपज संग्रह करते हैं।

  • मनरेगा रोज़गार का मुख्य स्रोत है।
  • JSLPS महिला स्वयं सहायता समूह इमली, लाह, मशरूमउत्पादन, मुर्गी पालन और बांस शिल्प में सक्रिय हैं।
  • पारंपरिक लाह गहने, और लकड़ी शिल्प को फिर से जीवित किया जा रहा है।

पर्यटन और दर्शनीय स्थल

भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली के रूप में जाना जाने वाला खूंटी जिला इतिहास, संस्कृति, प्राकृतिक सुंदरता और आदिवासी विरासत का अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है। अपने सुरम्य झरनों, पवित्र उपवनों और जीवंत आदिवासी परंपराओं के साथ, खूंटी को इतिहास प्रेमियों, प्रकृति प्रेमियों और पर्यावरण-पर्यटकों के लिए एक शांत लेकिन सांस्कृतिक रूप से समृद्ध गंतव्य के रूप में देखा जाता है।

झरने एव प्राकृतिक स्थल/h5>

  • पंचघाघ जलप्रपात – पांच धाराओं का संगम, खूंटी से 9 किमी।
  • पेरवाघाघ जलप्रपात – चाटा नदी पर स्थित, खूंटी से40 किमी दूर।
  • रानी जलप्रपात – तजना नदी पर, खूंटी से15–20 किमी।

मौसमी झरनों में उलुंग जलप्रपात, रीमिक्स जलप्रपात, दशम जलप्रपात और लतरातु बांध एवं जलाशय शामिल हैं।

ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल:
  • डोंबारी बुरु – बिरसा मुंडा का आंदोलन स्थल।
  • उलीहातु – बिरसा मुंडा का जन्मस्थान, सांस्कृतिक धरोहर।
  • अमरेश्वर धाम (अंगराबाड़ी) – प्राकृतिक शिवलिंग।
  • जी.ई.एल. चर्च, मुरहू – औपनिवेशिक काल की वास्तुकला।
वन्य और पारिस्थितिक स्थल
  • बिरसा मृग विहार – 54 एकड़ का हिरण संरक्षण पार्क।
  • सरना स्थल – पवित्र वनों में पारंपरिक पूजा स्थान।
उभरते पर्यटन स्थल
  • लतरातू डैम और जलाशय– नवम्बर–फरवरी में पर्यटकों में लोकप्रिय।

संरचना और संपर्क

खूंटी जिले में आधारभूत संरचना का निरंतर विकास हो रहा है। जिले के सभी प्रखंडों में पक्की सड़कों की सुविधा उपलब्ध है, जिससे आवागमन सुगम हुआ है। रेलवे संपर्क के लिए नजदीकी स्टेशनगोविंदपुर रोडहै, जो हटिया–पकरा रेलखंड पर स्थित है। सभी ब्लॉकों में मोबाइल नेटवर्क की उपलब्धता से दूरसंचार सेवाएं बेहतर हुई हैं। ग्रामीण विद्युतीकरण की दिशा में भी महत्वपूर्ण प्रगति हुई है; दीनदयाल उपाध्याय योजनाऔरसौभाग्य योजनाके अंतर्गत अधिकांश गाँवों को बिजली से जोड़ा गया है। पेयजल व्यवस्था के लिए हैंडपंप और बोरवेल प्रमुख स्रोत हैं, जबकिजल जीवन मिशनके अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में पाइप जल आपूर्ति योजनाएं सक्रिय रूप से कार्यान्वित की जा रही हैं।

प्रमुख व्यक्तित्व – भगवान बिरसा मुंडा

भगवान बिरसा मुंडा (1875–1900),

खूंटी जिले के उलीहातु गांव में जन्मे महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक सुधारक थे। उन्हें “धरती आबा” (पृथ्वी के पिता) के नाम से सम्मानित किया गया। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफउलगुलान (महाविद्रोह) का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने आदिवासी समुदायों के अधिकारों, खासकर उनकी भूमि और वनों के संरक्षण की लड़ाई लड़ी।

भगवान बिरसा मुंडा ने अपने जीवन में आदिवासी समाज को न केवल सामाजिक समानता और धार्मिक जागरण का संदेश दिया, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भरता और स्वराज्य की दिशा में भी प्रेरित किया।

1900 में मात्र 25 वर्ष की आयु में ब्रिटिश हिरासत में उनके असमय निधन के बावजूद, भगवान बिरसा मुंडा की विरासत आज भी आदिवासी गर्व, प्रतिरोध और पहचान के प्रतीक रूप में जीवित है।झारखंड ही नहीं, पूरे भारत में अनेक संस्थानों, स्मारकों और सरकारी योजनाओं का नाम उनके सम्मान में रखा गया है। उनका जीवन और उनके आदर्श आज भी पीढ़ियों को न्याय, सम्मान और स्वाभिमान के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं।